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क़त’आत / सफ़ी लखनवी

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क़त’आत
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कैसी-कैसी सूरतें ख़्वाबे-परीशाँ हो गईं?
सामने आँखों के आईं और पिन्हाँ हो गईं॥

ज़ोर ही क्या था जफ़ाये-बाग़बां देखा किये।
आशियां उजडा़ किया, हम नातवां देखा किये॥

तू भी मायूसे-तमन्ना मेरे अन्दाज़ में है।
जब तो यह दर्द पपीहे तेरी आवाज़ में है॥

हमारी आँख से जब देखिये आँसू निकलते हैं।
जबीं की हर शिकन से दर्द के अहलू निकलते हैं॥


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