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{{KKRachna
|रचनाकार=सफ़ी लखनवी
}}
<poem>
वो खुद सर से क़दम तक डूब जाते हैं पसीने में।
मेरी महफ़िल में जो उनको, पशेमां देख लेते हैं॥
‘सफ़ी’ रहते हैं जानो-दिल फ़िदा करने पै आमादा।
मगर उस वक्त जब इन्साँ को इन्साँ देख लेते हैं॥
</poem>
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|रचनाकार=सफ़ी लखनवी
}}
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वो खुद सर से क़दम तक डूब जाते हैं पसीने में।
मेरी महफ़िल में जो उनको, पशेमां देख लेते हैं॥
‘सफ़ी’ रहते हैं जानो-दिल फ़िदा करने पै आमादा।
मगर उस वक्त जब इन्साँ को इन्साँ देख लेते हैं॥
</poem>