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Kavita Kosh से
अपनों ने ताज तज दिया हैं तो गैरों मैं जा के बैठ
ऐ खानमा खराब न तनहा शराब पी
फिर जब तलक ये उकदा , न सुलझा, शराब पी
ऐ तू के तेरे दर पे हैं रिन्दों के जमघटे
दो जम जाम उनके नाम भी ऐ-पीरे-मैकदा
जिन रफ्तागा के साथ हमेशा शराब पी