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ये सुरमई फ़ज़ाओं फ़ज़ाओं१ की कुछ कुनमुनाहटेंमिलती हैं मुझको पिछले पहर तेरी आहटें।*
इस कायनाते-ग़म की फ़सुर्दा फ़सुर्दा२ फ़ज़ाओं में
बिखरा गये है आ के वो कुछ मुस्कुराहटें।
ऐ जिस्मे - नाज़नीने - निगारे -नज़रनवाज़नज़रनवाज़३
शुब्हे - शबे - विसाल तेरी मलगजाहटें।
बल - बे - जबीने -नाज़ तेरी जगमगाहटें।
चलती जब नसीमे - ख़याले- ख़रामे-नाज़नाज़४
सुनता हूँ दामनों की तेरे सरसराहटें।
चश्मे -सियह तबस्सुमे - पिनहाँ पिनहाँ५ लिये हुये
पौ फूटने से पहले उफ़ुक़ की उदाहटें।
और उसकी पहली सुब्ह की वो रसमसाहटें।
साजे - जमाल के नवाहा - ए - सर्मदीसर्मदी६
जोबन तो वो फ़रिस्ते सुने गुनगुनाहटें।
आज़ुर्दगी - ए - हुस्न हुस्न७ भी किस दर्जा शोख़ है
अश्कों में तैरती हुई कुछ मुस्कुराहटें।
होने लगा है ख़ुद से करींकरीं८, ऐ शबे-अलमअलम९
मैं पा रहा हूँ हिज्र में कुछ अपनी आहटें।
मेरी ग़ज़ल की जान समझना उन्हे ’फ़िराक़’
शम्ए - खयाले - यार की ये थरथराहटें।
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