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इतिहास / सत्यपाल सहगल

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|रचनाकार=सत्यपाल सहगल
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}}
<poem>उसका बुख़ार नहीं जाता वह लम्बे समय से बीमार है
ना माओं की गिनती है न बेटों की
साईकिल और कारें हड़बड़ाई जाती हैं रेहड़ियाँ,आदमी
दूसरे आदमी को धक्का देता
खून से सभी को कै आती है पर ज़िन्दगी की छुरी
ज़्यदा कातिल है
सब कुछ के बावजूद दुनिया धुरी पर घूमती है
सब कुछ के बावजूद दुनिया धुरी पर घूमेगी
सड़कों और खेतों में लाशें हैं मुकाबले और मुठभेड़े
रोमाँचक कथा दर कथा
हत्या से मिलती है हत्या डर कर भागते हुए
यह बसंत है
प्यार अँगड़ाई लेता है बेशर्मी और निर्ममता से
समय रुक चुका है
पर उसकी फसल बिल्कुल पकी खड़ी है दराती वाले
हाथों के इंतज़ार में</poem>
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