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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सत्यपाल सहगल
|संग्रह=कई चीज़ें / सत्यपाल सहगल
}}
<poem>(चैन नहीं आयेगा शाम के बाद तक)
भीतर झम-झम बरसात होगी
सड़कें बीरान
आधी रात के समीप का समय होगा कोई
कोई गाड़ी जाती होगी अपने किसी गंतव्य पर
निश्चित
एक कुत्ता णर करेगा दृश्य गली के अदृश्य में
अचानक मुझे याद आयेगी माँ
मैं बुक्का फाड़ रोऊँगा
तभी सड़क से गुज़रेगा एक मनुष्य तेज़-तेज़
घर जहाँ उसे होना चाहिए था वक्त पर
तभी बिल्कुल तभी
कविता का दरवाज़ा कोई ऐसे भड़भड़ाएगा
जैसे टाँग में गोली लगी हो
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=सत्यपाल सहगल
|संग्रह=कई चीज़ें / सत्यपाल सहगल
}}
<poem>(चैन नहीं आयेगा शाम के बाद तक)
भीतर झम-झम बरसात होगी
सड़कें बीरान
आधी रात के समीप का समय होगा कोई
कोई गाड़ी जाती होगी अपने किसी गंतव्य पर
निश्चित
एक कुत्ता णर करेगा दृश्य गली के अदृश्य में
अचानक मुझे याद आयेगी माँ
मैं बुक्का फाड़ रोऊँगा
तभी सड़क से गुज़रेगा एक मनुष्य तेज़-तेज़
घर जहाँ उसे होना चाहिए था वक्त पर
तभी बिल्कुल तभी
कविता का दरवाज़ा कोई ऐसे भड़भड़ाएगा
जैसे टाँग में गोली लगी हो
</poem>