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|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध
}}
[[Category:बाल{{KKCatBaalKavita}}<poem>ज्यों निकल कर बादलों की गोद सेथी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ीसोचने फिर-कविताएँ]]फिर यही जी में लगी,आह ! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी ?
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से<br>देव मेरे भाग्य में क्या है बदा,थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी<br>मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ?सोचने या जलूँगी फिर-फिर यही जी में लगीअंगारे पर किसी,<br>आह ! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी चू पडूँगी या कमल के फूल में ?<br><br>
देव मेरे भाग्य में क्या है बदा,<br>बह गयी उस काल एक ऐसी हवामैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ?<br>वह समुन्दर ओर आई अनमनीया जलूँगी फिर अंगारे पर किसी,<br>एक सुन्दर सीप का मुँह था खुलाचू पडूँगी या कमल के फूल वह उसी में ?<br><br>जा पड़ी मोती बनी ।
बह गयी उस काल एक ऐसी हवा<br>वह समुन्दर ओर आई अनमनी<br>एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला<br>वह उसी में जा पड़ी मोती बनी ।<br><br> लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते<br>जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर<br>किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें<br>बूँद लौं कुछ और ही देता है कर ।<br><br/poem>
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