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वर्ष 1938 से ही उन्होंने मुशायरों में भाग लेना शुरू कर दिया। खुमार ने अपना पहला मुशायरा बरेली में पढ़ा। उनका प्रथम शेर 'वाकिफ नहीं तुम अपनी निगाहों के असर से, इस राज को पूछो किसी बरबाद नजर से' था । ढाई वर्ष के अंतराल में ही वे पूरे मुल्क में प्रसिद्ध हो गये। उस दौर में जिगर मुरादाबादी उच्च कोटि के शायर माने जाते थे चूंकि खुमार ने 'तरन्नुम' से ही शुरूआत की, इसलिये शीघ्र ही वे जिगर मुरादाबादी के समकक्ष पहुंच गये। मुशायरों में अगर मजरूह सुलतानपुरी साहब के बाद अगर किसी को तवज्जो दी जाती थी तो वो "खुमार साहब" ही थे |
वैसे तो खुमार साहब मुशायरों को ही तवज्जो देते थे , लेकिन फिर भी उन्होंने कुछ फिल्मो फ़िल्मों के गीत भी लिखे , जो उनकी गज़लों ग़ज़लों की तरह ही उम्दा हैं |हर दिल अजीज 'खुमार बाराबंकवी' को वर्ष 1942-43 में प्रख्यात फिल्म निर्देशक एआर अख्तर ने मुम्बई बुला लिया। यहां यहाँ से शुरू हुआ उनका फिल्मी सफर फ़िल्मी सफ़र और वे फिल्मी फ़िल्मी दुनिया में एक सफल गीतकार के रूप में जुड़ गये। गए।
आपने 1955 में फिल्म "रुखसानारुख़साना" के लिये "शकील बदायूँनी" के साथ गाने लिखे थे। उससे पहले 1946 में फिल्म फ़िल्म "शहंशाह " के एक गीत "चाह बरबाद करेगी" को "खुमार" साहब ने हीं लिखा था, जिसे संगीत से सजाया था "नौशाद" ने और अपनी आवाज़ दी थी गायकी के बेताज बादशाह "के०एल०सहगल" साहब ने |
खुमार साहब ने चार पुस्तकें भी लिखीं ये पुस्तकें शब-ए-ताब, हदीस-ए-दीगर,आतिश-ए-तर और रख्स-ए-मचा है।
खुमार की पुस्तकें कई विश्वविद्यालयों के पाठयक्रम में शामिल की गई। उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी, जिगर मुरादाबादी, उर्दू अवार्ड, उर्दू सेंटर कीनिया और अकादमी नवाये मीर उस्मानियां उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद, मल्टी कल्चरल सेंटर ओसो कनाडा, अदबी संगम न्यूयार्क, दीन दयाल जालान सम्मान वाराणसी, कमर जलालवी एलाइड्स कालेज पाकिस्तान आदि ने सम्मानित किया।
वर्ष 1992 में दुबई में खुमार की प्रसिद्धि और कामयाबी के लिये जश्न मनाया गया। 25 सितम्बर 1993 को जिले में जश्न-ए-खुमार का आयोजन किया गया। जिसमें तत्कालीन गवर्नर मोतीलाल बोरा ने एक लाख की धनराशि व प्रशस्ति पत्र उन्हें देकर सम्मानित किया।
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