भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुनव्वर राना }} <poem> कभी थकन के असर का पता नहीं च...

{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मुनव्वर राना
}}

<poem>

कभी थकन के असर का पता नहीं चलता
वो साथ हो तो सफ़र का पता नहीं चलता

वही हुआ कि मैं आँखों में उसकी डूब गया
वो कह रहा था भवंर का पता नहीं चलता

उलझ के रह गया सैलाब कुर्रए दिल से
नहीं तो दीदा - ए - तर का पता नहीं चलता

उसे भी खिड़कियाँ खोले जमाना बीत गया
मुझे भी शामो सहर का पता नहीं चलता

ये मंसबो का इलाका है इसलिए शायद
किसी के नाम से घर का पता नहीं चलता


</poem>
31
edits