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Kavita Kosh से
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सावन के सहनइया भदोइया के किचकिच हे,
सुगा-सुगइया के पेट, वेदन कोई न जानये जानय हे।
सुगा-सुगइया के पेट, कोइली दुःख जानये जानय हे,
एतना वचन जब सुनलन, सुनहूँ न पयलन हे।