भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ |संग्रह=अनकहा / सुदर्शन वशिष्ठ }} <...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
|संग्रह=अनकहा / सुदर्शन वशिष्ठ
}}
<poem>कभी उजास फैलते ही देखिए
सब स्थिर खड़ा दिखता है
पेड़,पौधे,पहाड़ आकाश
दीवार,घर,मेज़,कुर्सी,सड़क
सब चीज़ें चुपचाप खड़ी रहती हैं
शांत है सारा संसार।
फिर न जाने कौन मचाता है हलचल
कोई तो है जो उथल-पुथल करता है सब
जो चीज़ जहाँ है, किसे ने तो रखी होगी
उठाकर हिलाकर
सभे चीज़ें हिलती हैं हिलाने से
वरना पड़ी रहती हैं चुपचाप
हाँ,चीज़ें हिलती हैं हिलाने से
हिलता है हिलाने से सोया हुआ आदमी

रास्ते का पत्थर
सड़क किनारे रेहड़ी
या खुद सड़क।

आसन से सिंहासन
हिलते हैं हिलाने से
वरना सभी चीज़ें पड़ी रहती हैं
जैसी हैं जहाँ हैं।
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits