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श्लथ धनु-गुण है, कटिबन्ध स्रस्त तूणीर-धरण,<br>
दृढ़ जटा - मुकुट हो विपर्यस्त प्रतिलट से खुल<br>
फैला पृष्ठ पर, बाहुओं पर, वृक्ष वक्ष पर, विपुल<br>
उतरा ज्यों दुर्गम पर्वत पर नैशान्धकार<br>
चमकतीं दूर ताराएं ज्यों हों कहीं पार।<br><br>
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