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[[Category:ग़ज़ल]]
छोड़ दे ए दिल अक़्लो—ख़िरद अक़्लो-ख़िरद<ref> बुद्धि</ref>की ये टूटी—फूटी पगडंडी
इश्क़ की मंज़िल तक जाती है सिर्फ़ जुनूँ <ref>उन्माद</ref>की ही पगडंडी
दिल का रमता जोगी जाने किसकी खोज में घूम रहा है
बस्ती—बस्तीबस्ती-बस्ती, सहरा—सहरा, दर—दरदर-दर, पगडंडी—पगडंडी
पहले ही तुम सोच समझ लो प्यार की मंज़िल बड़ी कठिन है
राह में कोई पेड़ न साया, कोसों धूल—भरी धूल-भरी पगडंडी
उस तन्हा मस्कन <ref>निवास स्थान </ref> तक जाना ऐसा भी क्या मुश्किल होगा
आख़िर वहाँ भी जाती होगी कोई डगर, कोई पगडंडी
शाम पड़े तो एक सिरे पर आँख लगाये गुम—सुम गुम-सुम दोनों
जाने क्या तकते रहते हैं मैं और ये सूनी पगडंडी
दिल की बातों पर मत जाना मेरा तेरा मिलन कठिन है
तू है रौशन काहकशाँ—सी <ref>आकाश गंगा—सी</ref> मैं इक धुँधली—सी धुँधली-सी पगडंडी
‘शौक़’! कई बरसों के बाद अब के जब मैं गाँव गया तो
पहरों मुझ से कहती रही कुछ एक पुरानी—सी पगडंडी.   अक़्लो—ख़िरद=बुद्धि; जुनूँ=उन्माद; मस्कन=निवास स्थान; काहकशाँ=आकाश गंगा