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Kavita Kosh से
उनसे बिछड़े सदियाँ बीतीं केकिन लेकिन अब तक है यह आलम
चारों सम्त <ref>ओर</ref> वही सन्नाटा , चारों सम्त वही तन्हाई
प्यार में दो पल हँसने वालो आख़िरकार वही होना है
फ़ुर्क़त<ref>विरह</ref>, आँसू, आहें, टीसें, सदमे ,ख़ामोशी ,तन्हाई
तेरी लगन का भूला सब कुछ, होश नहीं है मुझको अब कुछ
क्या है क़ुर्बत<ref>सामीप्य</ref>, कैसी फ़ुर्क़त<ref>विरह</ref>, क्या महफ़िल, कैसी तन्हाई
कभी—कभी तो माल <ref>Mall Road</ref> की रौनक़ से भी दिल उकता जाता है
कभी—कभी अच्छी लगती है अपने कमरे की तन्हाई
उनसे जुदा होने की साअत <ref>क्षण</ref> जब भी मुझे याद आ जाती है
और भी तन्हा हो जाती है शौक़ मेरे दिल की तन्हाई