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[[Category:ग़ज़ल]]
कशिश ही ऐसी है कुछ मेरे दिल के छालों में
तिरे सुलूक <ref>व्यवहार</ref> का चाहा था तजज़िया करना<ref>विश्लेषण करना </ref>
तमाम उम्र मैं उलझा रहा सवालों में
हमें भी शौक़ मयस्सर <ref>उपलब्ध</ref> रही है ये नेमत
रहे हैं हम भी किसी के हसीं ख़्यालों में.