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रणथम्भौर का राजा / अमित कल्ला

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हज़ार
दहलिज़े पार कर
चुनौती दे
आकाशीय मेहराबों को
फ़िर लौट आता है

नदी को चीर देता
पर्वत -पर्वत रौंद
आँखों से आग बरसा
आप ही
बनता -बनता है
धारीदार करता
लुकाछिपी
चौकन्ना
चौकाता कैसा
ये रणथम्भौर का राजा ।
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