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17:14, 9 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=साक़िब लखनवी
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<poem>
मैं नहीं, लेकिन मेरा अफ़साना उनके दिल में है।
जानता हूँ मैं कि किस रग में यह नश्तर रह गया॥
आशियाने के तनज़्ज़ुल से बहुत खुश हूँ कि वो,
इस क़दर उतरा कि फूलों के बराबर रह गया॥
</poem>