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{{KKRachna
|रचनाकार=साक़िब लखनवी
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इज़्ज़त से बज़्मे-गुल में रहा आशियाँ मेरा।
तिनकों की क्या बिसात मगर नाम हो गया॥

इक मेरा आशियाँ है कि जलकर है बेनिशाँ।
इक तूर है कि जब से जला नाम हो गया॥


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