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क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं / हरिवंशराय बच्चन
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08:21, 10 सितम्बर 2009
अगणित अवसादों के क्षण हैं,
रजनी की सूनी
घड़ियों
घड़ियों
को किन-किन से आबाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
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