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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन
}}
<poem>
मानव पर जगती का शासन,
जगती पर संसृति का बंधन,
संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधो में रहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!
मानव पर जगती का शासन,<br>
जगती पर संसृति का बंधन,<br>
संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधो में रहना होगा!<br>
साथी, सब कुछ सहना होगा!<br>
 हम क्या हैं जगती के सर में!<br>जगती क्या, संसृति सागर में!<br>कि प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा!<br>साथी, सब कुछ सहना होगा!<br>
आ‌ओ, अपनी लघुता जानें,<br>अपनी निर्बलता पहचानें,<br>जैसे जग रहता आया है उसी तरह से रहना होगा!<br>
साथी, सब कुछ सहना होगा!
</poem>
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