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{{KKRachna
|रचनाकार=विनोद निगम
}}
<poem>
घाटियों में रितु सुखाने लगी है
मेघ घोये वस्त्र अनगिन रंग के
आ गये दिन, धूप के सत्संग के
</poem>
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|रचनाकार=विनोद निगम
}}
<poem>
घाटियों में रितु सुखाने लगी है
मेघ घोये वस्त्र अनगिन रंग के
आ गये दिन, धूप के सत्संग के
</poem>