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ऐसा कुछ भी नहीं / कैलाश वाजपेयी

110 bytes added, 07:06, 11 सितम्बर 2009
</poem>'''ऐसा कुछ भी नहीं जिंदगी में कि हर जानेवाली अर्थी पर रोया जाए |
काँटों बिच उगी डाली पर कल
जागी थी जो कोमल चिंगारी ,
ऐसा कुछ भी नहीं कल्पना में कि भूखे रहकर फूलों पर सोया जाए |'''
</poem></poem>
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