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{{KKRachna
|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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हमारा ज़िक्र जो ज़ालिम को अंजुमन में नही।
जभी तो दर्द का पहलू किसी सुख़न में नहीं॥

शहीदे-नाज़ की महशर में दे गवाही कौन?
कोई लहू का भी धब्बा मेरे कफ़न में नहीं॥

</poem>