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|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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नादाँ की दोस्ती में जी का ज़रर न जाना।
इक काम कर तो बैठे, और हाय कर न जाना॥

नादानियाँ हज़ारों, दानाई इक यही है।
दुनिया को कुछ न जाना और उम्र भर न जाना॥

नादानियों से अपनी आफ़त में फ़ँस गया हूँ।
बेदादगर को मैंने बेदादगर न जाना॥

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