भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
<poem>
कहो कहां होआमेना?शब्दों से बहुत प्यार करती थीक्या शब्दों में ही खो गई ?बहुत से शब्दों को मैंने पुकाराआमेना उन लफ्जों के भीतर से तुम नहीं बोलतीकहां हो आखिर तुम आमेना?आमेना तुमने तो कहा थालोककथाआें की पिरयों की तरह तुम्हारी जाननज्मों में अटकी हैधरती पर जिस लम्हा नज्म खतम होगी उस घड़ी तुम भी खतम हो जाआेगीकहां हो आखिर तुम आमेना?कई शब्दों को हौले हौले कई कई रातों तक तराशा मैंनेतुम कहीं क्यों नहीं उभरती आमेना?कितने शब्दों को कुरेदाकई शब्दो का हृदय चीरकर देखाकई शब्दों को फूलों के बीच छुपायाकई शब्दों को शबनम में पकायातुम कहीं भी मुकम्मल नहीं होतीक्या शब्दों से परे हो गई हो आमेना?इतनी जल्दीसात जनम भी खत्म हो जाते हेंक्या ऐसे ही ?बहुत याद आती हो आमेनाबहुत बहुत ज्यादाहम शब्दों को खटखटाते हैं किवाड़ों की तरहपूछते हें पता तुम्हाराशब्दों की दुनिया तो बहुत बड़ी है बहुत किठन हैक्या शब्दों से बड़ी हो गई हो तुम आमेना? क्या इसे ही शब्दातीत कहते हें आमेना ?
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits