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मैं तुम्हारी बाट जोहूँ!तुम दिशा मत मोड़ जाना।तिमर के पाहुन किसी दिन आैर आकर भेट करनाइस समय मैं ज्योति को विस्तार देने में लगी हंू।
तुम अगर ना साथ दोगेइस दिये से ही हृदय संसारपूर्ण कैरो छंद होंगे।सदियों ---से ---प्रकाशित।भावना के ज्वार कैसेयह सुनिश्चित रोशनी होनेपंक्तियों में बंद होंगे।वर्णमाला में दुखों की औरकुछ मत जोड़ जाना।नहीं ---पाई ---विभाजित।
देह से हूँ दूर लेकिनहूँ हृदय के पास भी मैं।नयन में सावन संजोएयह मुझे संभावना, लय आैर स्वर तक सौंप बैठाइसलिए -मैं गीत हूँ, मधुमास भी मैं।तार को -आकार -देने -में झंकार भर करबीन-सा मत तोड़ जाना।लगी हंू।
पी गई सारा अंधेरातन तपाकर ही इसे यह देहदीपकंचन -सी जलती रही मैं।इस भरे पाषाण युग मेंमोम-सी गलती रही मैं।की ---मिली --है।प्रात बातियों --को संध्या बनाकर-मुक्त मन सेसूर्यसंिध -नतर्न -की -मिली -सा मत छोड़ जाना।है।
फिर उतरते और चढ़तेयह समय अंिधयार के अवसान का है, यह समझकरव्योम से ये ज्योति निर्झर।जि़ंदगी -को -मैं -नया -आधार -देने -में -लगी -हंू।एक दर्पण सामने करभाव झरते नेह अंतर।दीप -माटी -के -तुम्हारेजो लहर को खिलखिला नाम --की -आराधनाएं।देता पवन हो -गई -इतनी -सजलजैसे कि हो संवेदनाएं। इस अमावस में मनुज के पांव चलते थक न जायेंआस्थाआें -का एक झोंका-सकल -उपचार -देने -में -लगी हंू।मुक्त होकर ले लिया उस मुक्ति ज्योति निझर्र में नहाकरधरा -आलोकित हुई -है।रिश्मयों के साथ बंदनवारभी -पुलकित --हुई ---है। एक दीपक द्वार पर मैंने जलाया नाम जिसकेस्वस्ितकों का आधार मैंने।पुण्यमय अधिकार देने में लगी हंू।
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