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भारति, जय, विजय करे
कनक - शस्य - कमल धरे!
लंका पदतल - शतदलगर्जितोर्मि सागर - जलधोता शुचि चरण - युगल
स्तव कर बहु अर्थ भरे!
तरु-तण वन - लता - वसनअंचल में खचित सुमन,गंगा ज्योतिर्जल - कणधवल - धार हार लगे!
मुकुट शुभ्र हिम - तुषारप्राण प्रणव ओंकार,ध्वनित दिशाएँ उदार,शतमुख - शतरव - मुखरे!</poem>