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15:37, 21 नवम्बर 2010
|रचनाकार=रमानाथ अवस्थी
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मन को वश में करो फिर चाहे जो करो। रोको मत जाने दो जाना है दूर
कर्ता वैसे तो और है जाने को मन ही होता नहीं,रहता हर ठौर लेकिन है कौन यहाँ जो कुछ खोता नहीं वह सबके साथ है दूर नहीं पास तुमसे मिलने का मन तो है मैं क्या करूँ?बोलो तुम उसका ध्यान धरो। कैसे कब तक मैं धीरज धरूँ ।फिर चाहे जो करो।मुझसे मत पूछो मैं कितना मज़बूर ।
सोच रोको मत बीते को हार मत जीते को गगन कब झुकता जाने दो जाना है समय कब रुकता है समय से मत लड़ो। फिर चाहे जो करो। दूर
रात वाला सपनाअनगिन चिंताओं के साथ खड़ा हूँ यहाँ सवेरे कब अपनापूछता नहीं कोई जाऊँगा मैं कहाँ ?रोज़ यह होता तन की क्या बात मन बेहद सैलानी है व्यर्थ क्यों रोता कर नहीं पाता मन अपनी मनमानी है ।डर दर्द भी सहे हैं हो कर के मशहूर रोको मत मरो।जाने दो जाना है दूरफिर चाहे अब नहीं कुछ भी पाने को मन करताकभी-कभी जीवन भी मुझको अखरतासाँस का ठिकाना क्या आए न आएयह बात कौन किसे कैसे समझाएहोना है जो करो।भी वह होगा ज़रूर । रोको मत जाने दो जाना है दूर ।
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