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{{KKRachna
|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
}}
<poem>
क़फ़स से ठोकरें खाती नज़र जिस नख़्ल तक पहुँची।
उसी पर लेके इक तिनका बिनाए-आशियाँ रख दी॥