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क़फ़स से ठोकरें खाती नज़र जिस नख़्लतक पहुंची / आरज़ू लखनवी
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क़फ़स से ठोकरें खाती नज़र जिस नख़्ल तक पहुँची।
उसी पर लेके इक तिनका बिनाए-आशियाँ रख दी॥
चंद्र मौलेश्वर
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