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|रचनाकार=अवतार एनगिल
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}}
<poem>घुल गया
काला-नीला
रस्सियों जकड़ा आकाश
काफी के प्याले में

उलझनों का ताना-बाना
सुन्दरम भ्रांतियों का आनन्द
हमारे होंठ रंगीन कर गया
शोक प्रस्ताव पढ़ता जोकर
बहुरूपियों के शहर में
रूप बदलता मर गया।
</poem>
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