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|रचनाकार=अकबर इलाहाबादी
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[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}
<Poem>
आपसे बेहद मुहब्बत है मुझे
झूठ से वल्लाह नफ़रत है मुझे
रोज़े-रिन्दी <ref>शराब पीने का दिन</ref> है नसीबे-दीगराँ<ref>दूसरों की क़िस्मत में</ref>
शायरी की सिर्फ़ क़ूवत है मुझे
दे दिया मैंने बिलाशर्त उन को दिल
मिल रहेगी कुछ न कुछ क़ीमत मुझे
 
'''शब्दार्थ :
रोज़े-रिन्दी= शराब पीने का दिन; नसीबे-दीगराँ= दूसरों की क़िस्मत में
</poem>
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