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|रचनाकार=अकबर इलाहाबादी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>उन्हें शौक़-ए-इबादत भी है और गाने की आदत भी<br>निकलती हैं दुआऎं उनके मुंह से ठुमरियाँ होकर <br><br>
तअल्लुक़ आशिक़-ओ-माशूक़ का तो लुत्फ़ रखता था<br>मज़े अब वो कहाँ बाक़ी रहे बीबी मियाँ होकर <br><br>
न थी मुतलक़ तव्क़्क़ो बिल बनाकर पेश कर दोगे <br>मेरी जाँ लुट गया मैं तो तुम्हारा मेहमाँ होकर <br><br>
हक़ीक़त में मैं एक बुलबुल हूँ मगर चारे की ख्वाहिश ख़्वाहिश में <br>बना हूँ मिमबर-ए-कोंसिल यहाँ मिट्ठू मियाँ होकर<br><br>
निकाला करती है घर से ये कहकर तू तो मजनू मजनूं है <br>
सता रक्खा है मुझको सास ने लैला की माँ होकर
</poem>
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