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Kavita Kosh से
|रचनाकार=अकबर इलाहाबादी
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जान ही लेने की हिकमत <ref>विधि</ref> में तरक़्क़ी देखी
मौत का रोकने वाला कोई पैदा न हुआ
मुझको हैरत है यह किस पेच में आया ज़ाहिद
दामे-हस्ती <ref>जीवन रूपी जाल</ref> में फँसा, जुल्फ़ का सौदा <ref>आशिक</ref> न हुआ
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