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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
}}
<poem>किधर से आए थे आख़िर गए कहां, लिखना
अंधेरी रात के तारों की दास्तां लिखना ।
किसी भी शख़्स का अब तक कोई सुराग़ नहीं
सफ़र में लूट लिआ किसने कारवां लिखना ।
हवेलियों की सियासत के ज़िक्र से पहले
असल में ख़ाक हुईं कितनी झुग्गियां लिखना ।
अंधेरे दौर का मतलब अंधेरगर्दी है
जिगर के दर्द को लफ़्ज़ों के दरम्यां लिखना।
हवा में झूमते मदमस्त पेड़ के पत्तों
अधूरे गांव की पूरी कहानियां लिखना ।
जई दिनों से नहीं आए ख़्वाब में जुगनू
ज़रूर याद से अपनी उदासियां लिखना ।</poem>
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|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
}}
<poem>किधर से आए थे आख़िर गए कहां, लिखना
अंधेरी रात के तारों की दास्तां लिखना ।
किसी भी शख़्स का अब तक कोई सुराग़ नहीं
सफ़र में लूट लिआ किसने कारवां लिखना ।
हवेलियों की सियासत के ज़िक्र से पहले
असल में ख़ाक हुईं कितनी झुग्गियां लिखना ।
अंधेरे दौर का मतलब अंधेरगर्दी है
जिगर के दर्द को लफ़्ज़ों के दरम्यां लिखना।
हवा में झूमते मदमस्त पेड़ के पत्तों
अधूरे गांव की पूरी कहानियां लिखना ।
जई दिनों से नहीं आए ख़्वाब में जुगनू
ज़रूर याद से अपनी उदासियां लिखना ।</poem>