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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>हम गुनाहगार है तुम्हारे
नन्हे मोशे ...
तुम कितने विश्वास के साथ
मेहमान बन कर आए थे
भारत की जमीं पर ...
नन्ही किलकारी ने
अभी देश ,भाषा के भेद को
कहाँ समझा था.....
अभी तो नन्हे मोशे
तुम जानते थे सिर्फ़
माँ के आँचल में छिपना
पिता का असीमित दुलार
और इन्हीं में सिमटा था
तुम्हारा नन्हा संसार ....
नही जाना था अभी तो तुमने
ठीक से बोलना और चलना
डगमग क़दमों से सिर्फ़ ......
अभी दुनिया की झलक को
सिर्फ़ खेल और खिलोनों में देखा था ..
अभी तो तुम समझ भी न पाए होगे
बन्दूक से निकलती गोलियों का मतलब
न ही तुम्हे याद रहेगा
अपनी माँ के चेहरे का वह सहमापन
पिता की हर हालत में तुम्हे बचा लेने की कोशिश
और न ही याद रहेगा ,उनका तुम्हे बचाते हुए
चुपचाप ,कभी न उठने के लिए सो जाना
शायद तुमने रो रो कर अपनी माँ को उठाया होगा
दी होगी पिता को आवाज़ भी कुछ खाने के लिए
पर सिर्फ़ शून्य हाथ आया होगा
कैसे तुमने
उन बदूक के साए में गुजारे होंगे
वह पल अकेले...
कैसे ख़ुद को उस
नफरत की आग से बचाया होगा
तुम्हारा मासूम चेहरा..
तुम्हारे बहते आंसू..
तुम्हारी वो तोतली बोली..
माँ -बाबा को पुकारने की आवाज़
उन वहशी दरिंदो को ना ही सुनाई दी
और न ही सहमा पायी
पर .....
हम कभी नही भूलेंगे कि
"अतिथि देवो भव"
कहे जानी वाली धरती पर
तुमने अपने जीवन के सबसे
अनमोल तोहफे और
भविष्य के आने वाले
सब अनमोल पल खो दिए
हम गुनाहगार है तुम्हारे
नन्हे मोशे ...</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>हम गुनाहगार है तुम्हारे
नन्हे मोशे ...
तुम कितने विश्वास के साथ
मेहमान बन कर आए थे
भारत की जमीं पर ...
नन्ही किलकारी ने
अभी देश ,भाषा के भेद को
कहाँ समझा था.....
अभी तो नन्हे मोशे
तुम जानते थे सिर्फ़
माँ के आँचल में छिपना
पिता का असीमित दुलार
और इन्हीं में सिमटा था
तुम्हारा नन्हा संसार ....
नही जाना था अभी तो तुमने
ठीक से बोलना और चलना
डगमग क़दमों से सिर्फ़ ......
अभी दुनिया की झलक को
सिर्फ़ खेल और खिलोनों में देखा था ..
अभी तो तुम समझ भी न पाए होगे
बन्दूक से निकलती गोलियों का मतलब
न ही तुम्हे याद रहेगा
अपनी माँ के चेहरे का वह सहमापन
पिता की हर हालत में तुम्हे बचा लेने की कोशिश
और न ही याद रहेगा ,उनका तुम्हे बचाते हुए
चुपचाप ,कभी न उठने के लिए सो जाना
शायद तुमने रो रो कर अपनी माँ को उठाया होगा
दी होगी पिता को आवाज़ भी कुछ खाने के लिए
पर सिर्फ़ शून्य हाथ आया होगा
कैसे तुमने
उन बदूक के साए में गुजारे होंगे
वह पल अकेले...
कैसे ख़ुद को उस
नफरत की आग से बचाया होगा
तुम्हारा मासूम चेहरा..
तुम्हारे बहते आंसू..
तुम्हारी वो तोतली बोली..
माँ -बाबा को पुकारने की आवाज़
उन वहशी दरिंदो को ना ही सुनाई दी
और न ही सहमा पायी
पर .....
हम कभी नही भूलेंगे कि
"अतिथि देवो भव"
कहे जानी वाली धरती पर
तुमने अपने जीवन के सबसे
अनमोल तोहफे और
भविष्य के आने वाले
सब अनमोल पल खो दिए
हम गुनाहगार है तुम्हारे
नन्हे मोशे ...</poem>