भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} <poem>रुत निखरी ,हवा बहकी हुई...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>रुत निखरी ,हवा बहकी हुई
लगता है पतझड़ बीत गया
आओ न......
बुने फ़िर एक ख्वाब नया
और चल कर उनके होंठो पर
खिलते हुए टेसू देखे .....

यादों के झरोखों से
छंट रहा है
कुहासा कोई ...
माथे से हटा दे
सलवटों की लकीरें
पलकों पर गिरते हुए
गेसुओं के बादल देखे


बहके नहीं है
कब से इस
दिल के पैमाने
खुशबु के घेरे में ...
लिपटी हो रुत बसंती
अधरों पर मचलते हुए
लफ्जों के जाम देखे

गीली सीली
लकड़ी सा ...
सुलगने न दे अब मन
क्यों देखे आँख में आंसू
जुगनू सी चमक ले कर
अब नई ज़िन्दगी हम देखे


मचल रहे हैं आँखों में
अनकहे से अरमान
मन की झील में
क्यों उठ रही है हिलोरें
इसके कांपते स्वर में
नए खिलते गुलाब हम देखे

मुबारक कहने आई है
आज यह भीगी हुई शब भी
उतर जाए
रूह की गहराइयों में
जिस्म के पार से
आज मोहब्बत का नगर देखे....</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits