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* [[चर्चा में /अरविन्द श्रीवास्तव]]
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|रचनाकार=अरविन्द श्रीवास्तव
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वक्त बूँदों के उत्सव का था
बूँदें इठला रही थी
गा रही थीं बूँदें झूम - झूम कर
थिरक रही थीं
पूरे सवाब में

दरख्तों के पोर - पोर को
छुआ बूँदों ने
माटी ने छक कर स्वाद चखा
बूँदों का

रात कहर बन आयी थी बूँदे

सबेरे चर्चा में बारिश थीं

बूँदें नहीं

</poem>