भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
रात का-सा था अंधेरा,<br>
धार से कुछ फासले पर<br>
एक मुर्दा गा रहा था बैठकर जलती चिता पर!<br>
स्वप्न था मेरा भयंकर! <br><br>