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ओ सावन के बादल / पंकज सुबीर

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पिछवाड़े के नीम पे झूला डाला होगा काकाजी ने ।
उस झूले पर बैठ हुमकना पुरवय्या होगी मस्तानी ॥
 
नदिया के कानों में थोड़ा शरमा कर ये बतला देना।
आते माघ पूस तक बन जाएगी तू अम्‍मा से नानी ॥
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