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<poem>दहशत के वास्ते न ही नफरत के वास्ते
जीवन मिला है सबको मुहब्बत के वास्ते

इज्ज़त के सामने भला दौलत का क्या वकार
मर जाते हैं हजारों ही इज्ज़त के वास्ते

बैठे--बिठाए घर में ही मिलती नहीं कभी
संघर्ष करना पड़ता है शोहरत के वास्ते

हरयाली हर तरफ ही हो दुनिया में दोस्तो
काम ऐसा कोई कीजिये कुदरत के वास्ते

माना कि "प्राण" इसकी जरूरत सही मगर
क्यों भूलें रिश्तों -नातों को दौलत के वास्ते </poem>
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