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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=
}}
<poem>आइनों पे जमी है काई,लिख
झूठे सपनों की सच्चाई लिख

जलसे में तो सब खुश थे वैसे
फिर रोयी क्यों शहनाई,लिख

कभी रेत और कभी पानी पे
जो भी लिखे है पूरवाई,लिख

तेरी यादों में धुली-धुली-सी
अबके भिगी है तन्हाई,लिख

तारे शबनम के मोती फेंके
हुई चांद की मुँहदिखाई,लिख

क्या कहा रात ने जाते-जाते
क्यों सुबह खड़ी है शरमाई,लिख

कदम-कदम पे मुझको टोके है
कौन सांवली-सी परछाई,लिख

रुह में उतरे और बात करे
अब ऐसी भी इक रुबाई लिख
</poem>
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