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Kavita Kosh से
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ढुलकते आँसू सा सुकुमार
बिखरते सपनों सा अज्ञात,
चुरा कर ऊषा का सिन्दूर
मुस्कुराया जब मेरा प्रात,
छिपा कर लाली में चुपचाप
सुनहला प्याला लाया कौन?
हँस उठे छूकर टूटे तार
प्राण में मँड़राया उन्माद,
व्यथा मीठी ले प्यारी प्यास
सो गया बेसुध अन्तर्नाद,
घूँट में थी साकी की साध
सुना फिर फिर जाता है कौन?
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