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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|संग्रह=गुले-नग़मा / फ़िराक़ गोरखपुरी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ये सबाहत<ref>गोरी रंगत</ref> की ज़ौ<ref>चमक</ref> महचकाँ<ref>चन्द्रमा का प्रकाश बिखेरने वाला</ref> - महचकाँ
ये पसीने की रौ कहकशाँ<ref>आकाश गंगा</ref> - कहकशाँ।
इश्क़ था एक दिन दास्ताँ-दास्ताँ
आज क्यों है वही बेज़बाँ-बज़बाँ।
दिल को पाया नहीं मंज़िलों-मंज़िलों
हम पुकार आये हैं कारवाँ-कारवाँ।
इश्क़ भी शादमाँ-शादमाँ इन दिनों
हुस्न भी इन दिनों मेहरबाँ-मेह्रबाँ।
है तेरा हुस्ने-दिलकश, सरापा सवाल
है तेरी हर अदा, चीस्ताँ-चीस्ताँ।
दम-बदम शबनमो-शोला की ये लवें
सर से पा तक बदन गुलसिताँ-गुलसिताँ।
बैठना नाज़ से अंजुमन-अंजुमन
देखना नाज़ से, दास्ताँ - दास्ताँ।
महकी-महकी फ़जाँ खु़शबू-ए-ज़ुल्फ़ से
पँखड़ी होंट की, गुलफ़शाँ-गुलफ़शाँ।
जिसके साये में इक ज़िन्दगी कट गयी
उम्रे - ज़ुल्फ़े - रसा जाविदाँ-जाविदाँ।
ले उड़ी है मुझे बू - ए - ज़ुल्फ़े सियह
ये खिली चाँदनी बोसताँ - बोसताँ।
आज संगम सरासर जु - ए इश्क़ है
एक दरिया - ए - ग़म बेकराँ - बेकराँ।
जिस तरफ़ जाइये मतला-ए-नूर-नूर
जिस तरफ़ जाइये महवशाँ-महवशाँ।
बू ज़मी से मुझे आ रही है तेरी
तुझको क्यों ढूँढिये आसमाँ-आसमाँ।
सच बता मुझको, क्या यूँ ही कट जायेगी
ज़िन्दगी इश्क़ की रायगाँ-रायगाँ।
रूप की चाँदनी सोज़े-दिल<ref>दिल का दुख</ref> सोज़े-दिल
मौज़े-गंगो-जमन साज़े-जाँ<ref>जीवन राग</ref> साज़े-जाँ।
अहदो-पैमाँ कोई, हुस्न भी क्या करे
इश्क़ भी तो है कुछ बदगुमाँ-बदगुमाँ।
जैसे कौनैन<ref>विश्व</ref> के दिल प हो बोझ सा
इश्क़ से हुस्न है सरगराँ-सरगराँ।
क्यों फ़ज़ाओं की आँखों में थे अश्क़ से
वो सिधारे हैं जब शादमाँ-शादमाँ।
लब प आयी न वो बात ही हमनशीं<ref>साथी</ref>
आये क्या-क्या सुख़न दरम्याँ-दरम्याँ।
ढूँढते-ढूँढते ढूँढ लेंगे तुझे
गो निशा है तेरा बेनिशाँ-बेनिशाँ।
मेरे दारुल-अमाँ<ref>शान्ति की जगह</ref>, ऐ हरीमे-निगार<ref>महबूब के घर की चहरदीवारी </ref>
हम फिरें क्या युँही बेअमाँ-बेअमाँ।
यूँ घुलेगा-घुलेगा, तेरे इश्क़ में
रह गया इश्क़, अब उस्तुख़ाँ<ref>हड्डी</ref>-उस्तुखाँ।
हमको सुनना बहरहाल तेरी ख़बर
माजरा-माजरा, दास्ताँ-दास्ताँ।
उसके तेवर पर क़ुर्बान लुत्फ़ो-करम
मेहरबाँ-मेहरबाँ क़ह्रमाँ-कह्रमाँ<ref>कोपमान</ref>।
जी में आता है तुझको पुकारा करूँ
रहगुज़र-रहगुज़र आस्ताँ-आस्ताँ।
याद आने लगीं फिर अदायें तेरी
दिलनशीं-दिलनशीं जांसिताँ-जांसिताँ।
क्यों तेरे ग़म की चिंगारियाँ हो गयीं
सोज़े-दिल सोज़े दिल सोज़े जाँ सोज़े जाँ।
साथ है रात की रात वो रश्के-मह
मेजबाँ-मेजबाँ मेहमाँ-मेहमाँ।
इश्क़ की ज़िन्दगी भी ग़रज़ कट गयी
ग़मज़दा-ग़मज़दा शादमाँ-शादमाँ।
अब पड़े - अब पड़े उनके माथे प बल
अलहज़र-अलहज़र अलअमाँ - अलअमाँ।
इश्क़ ख़ुद अपनी तारीफ़ यूँ कर गया
अह्रमन - अह्रमन ईज़दाँ-ईज़दा।
कैफ़ो-मस्ती है इमकाँ-दर-इमकाँ, ’फ़िराक़’
चाँदनी है अभी नौजवाँ-नौजवाँ।
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|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|संग्रह=गुले-नग़मा / फ़िराक़ गोरखपुरी
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ये पसीने की रौ कहकशाँ<ref>आकाश गंगा</ref> - कहकशाँ।
इश्क़ था एक दिन दास्ताँ-दास्ताँ
आज क्यों है वही बेज़बाँ-बज़बाँ।
दिल को पाया नहीं मंज़िलों-मंज़िलों
हम पुकार आये हैं कारवाँ-कारवाँ।
इश्क़ भी शादमाँ-शादमाँ इन दिनों
हुस्न भी इन दिनों मेहरबाँ-मेह्रबाँ।
है तेरा हुस्ने-दिलकश, सरापा सवाल
है तेरी हर अदा, चीस्ताँ-चीस्ताँ।
दम-बदम शबनमो-शोला की ये लवें
सर से पा तक बदन गुलसिताँ-गुलसिताँ।
बैठना नाज़ से अंजुमन-अंजुमन
देखना नाज़ से, दास्ताँ - दास्ताँ।
महकी-महकी फ़जाँ खु़शबू-ए-ज़ुल्फ़ से
पँखड़ी होंट की, गुलफ़शाँ-गुलफ़शाँ।
जिसके साये में इक ज़िन्दगी कट गयी
उम्रे - ज़ुल्फ़े - रसा जाविदाँ-जाविदाँ।
ले उड़ी है मुझे बू - ए - ज़ुल्फ़े सियह
ये खिली चाँदनी बोसताँ - बोसताँ।
आज संगम सरासर जु - ए इश्क़ है
एक दरिया - ए - ग़म बेकराँ - बेकराँ।
जिस तरफ़ जाइये मतला-ए-नूर-नूर
जिस तरफ़ जाइये महवशाँ-महवशाँ।
बू ज़मी से मुझे आ रही है तेरी
तुझको क्यों ढूँढिये आसमाँ-आसमाँ।
सच बता मुझको, क्या यूँ ही कट जायेगी
ज़िन्दगी इश्क़ की रायगाँ-रायगाँ।
रूप की चाँदनी सोज़े-दिल<ref>दिल का दुख</ref> सोज़े-दिल
मौज़े-गंगो-जमन साज़े-जाँ<ref>जीवन राग</ref> साज़े-जाँ।
अहदो-पैमाँ कोई, हुस्न भी क्या करे
इश्क़ भी तो है कुछ बदगुमाँ-बदगुमाँ।
जैसे कौनैन<ref>विश्व</ref> के दिल प हो बोझ सा
इश्क़ से हुस्न है सरगराँ-सरगराँ।
क्यों फ़ज़ाओं की आँखों में थे अश्क़ से
वो सिधारे हैं जब शादमाँ-शादमाँ।
लब प आयी न वो बात ही हमनशीं<ref>साथी</ref>
आये क्या-क्या सुख़न दरम्याँ-दरम्याँ।
ढूँढते-ढूँढते ढूँढ लेंगे तुझे
गो निशा है तेरा बेनिशाँ-बेनिशाँ।
मेरे दारुल-अमाँ<ref>शान्ति की जगह</ref>, ऐ हरीमे-निगार<ref>महबूब के घर की चहरदीवारी </ref>
हम फिरें क्या युँही बेअमाँ-बेअमाँ।
यूँ घुलेगा-घुलेगा, तेरे इश्क़ में
रह गया इश्क़, अब उस्तुख़ाँ<ref>हड्डी</ref>-उस्तुखाँ।
हमको सुनना बहरहाल तेरी ख़बर
माजरा-माजरा, दास्ताँ-दास्ताँ।
उसके तेवर पर क़ुर्बान लुत्फ़ो-करम
मेहरबाँ-मेहरबाँ क़ह्रमाँ-कह्रमाँ<ref>कोपमान</ref>।
जी में आता है तुझको पुकारा करूँ
रहगुज़र-रहगुज़र आस्ताँ-आस्ताँ।
याद आने लगीं फिर अदायें तेरी
दिलनशीं-दिलनशीं जांसिताँ-जांसिताँ।
क्यों तेरे ग़म की चिंगारियाँ हो गयीं
सोज़े-दिल सोज़े दिल सोज़े जाँ सोज़े जाँ।
साथ है रात की रात वो रश्के-मह
मेजबाँ-मेजबाँ मेहमाँ-मेहमाँ।
इश्क़ की ज़िन्दगी भी ग़रज़ कट गयी
ग़मज़दा-ग़मज़दा शादमाँ-शादमाँ।
अब पड़े - अब पड़े उनके माथे प बल
अलहज़र-अलहज़र अलअमाँ - अलअमाँ।
इश्क़ ख़ुद अपनी तारीफ़ यूँ कर गया
अह्रमन - अह्रमन ईज़दाँ-ईज़दा।
कैफ़ो-मस्ती है इमकाँ-दर-इमकाँ, ’फ़िराक़’
चाँदनी है अभी नौजवाँ-नौजवाँ।
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