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तुम गा दो / हरिवंशराय बच्चन

15 bytes removed, 13:08, 26 सितम्बर 2009
मेरे वर्ण-वर्ण विश्रृंखल,
चरण्‍रचरण-चरण भरमाए,
गूँज-गूँजकर मिटने वाले
जब-जब जग जग ने कर फैलाए,
मैंने कोष लुटाया,
सुंदर और असुंदर जग में
मैंने क्‍या सराहा,
इतनी ममतामय दुनिया में
शेष अभी कुछ रहता,
जीवन की अंतिम घड़‍ियों घड़ियों में
भी तुमसे यक यह कहता,
सुख की एक साँस पर होता
है अमरत्‍प अमरत्‍व निछावर,
तुम छू दो, मेरा प्राण अमर हो जाए!
तुम गा दो, मेरे गान अमर हो जाए!
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