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निर्मल वर्मा की कहानियाँ-2 / मनीष मिश्र
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20:42, 26 सितम्बर 2009
<Poem>
ये आपको भरती नहीं हैं
ये सब कुछ उलीच देती
है
हैं
ये जाती हैं आपके जगमग पड़ोस में
अनिल जनविजय
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