भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
है एक ओर सुरम्य थल,
पर आज लहरों से ग्रसा, यह भी नहीं मैं जानता-
ओर मैं? किस ओर मैं?
है जीत एक तरफ खड़ी,
संघर्ष-जीवन में धँसा , यह भी नहीं मैं जानता-
ओर मैं? किस ओर मैं?