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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम दरश मिश्र }} <poem> बनाया है मैने ये घर धीरे-धीरे...
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{{KKRachna
|रचनाकार=राम दरश मिश्र
}}
<poem>
बनाया है मैने ये घर धीरे-धीरे,
खुले मेरे ख्वाबों के पर धीरे-धीरे.
किसी को गिराया न खुद को उछाला,
कटा जिन्दगी का सफ़्रर धीरे-धीरे.
जहां आप पहुंचे छ्लांगे लगाकर,
वहां मैं भी आया मगर धीरे-धीरे.
पहाडों की कोई चुनॊती नही थी,
उठाता गया यूं ही सर धीरे-धीरे.
न हंस कर न रोकर किसी में उडे़ला,
पिया खुद ही अपना ज़हर धीरे-धीरे,
गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया,
गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे.
ज़मीं खेत की साथ लेकर चला था,
उगा उसमें कोई शहर धीरे-धीरे.
मिला क्या न मुझको ए दुनिया त्तुम्हारी,
मोह्ब्ब्त मिली मगर धीरे-धीरे.
...
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{{KKRachna
|रचनाकार=राम दरश मिश्र
}}
<poem>
बनाया है मैने ये घर धीरे-धीरे,
खुले मेरे ख्वाबों के पर धीरे-धीरे.
किसी को गिराया न खुद को उछाला,
कटा जिन्दगी का सफ़्रर धीरे-धीरे.
जहां आप पहुंचे छ्लांगे लगाकर,
वहां मैं भी आया मगर धीरे-धीरे.
पहाडों की कोई चुनॊती नही थी,
उठाता गया यूं ही सर धीरे-धीरे.
न हंस कर न रोकर किसी में उडे़ला,
पिया खुद ही अपना ज़हर धीरे-धीरे,
गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया,
गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे.
ज़मीं खेत की साथ लेकर चला था,
उगा उसमें कोई शहर धीरे-धीरे.
मिला क्या न मुझको ए दुनिया त्तुम्हारी,
मोह्ब्ब्त मिली मगर धीरे-धीरे.
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