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|संग्रह=एकांत-संगीत / हरिवंशराय बच्चन
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जीवन में शेष विषाद रहा!
मिटने वाली यह भी हस्ती,
अवसाद बसा जिस खंडहर खँडहर में, क्या उसमें ही उन्माद रहा!
जीवन में शेष विषाद रहा!
यह खंडहर खँडहर ही था रंगमहल,
जिसमें थी मादक चहल-पहल,
लगता है यह खंडहर खँडहर जैसे पहले न कभी आबाद रहा!
जीवन में शेष विषाद रहा!
जीवन में थे दुख के दिन भी,
पर, हाय, हुआ ऐसा कैसे, सुख भूल गया, दुख याद रहा!
जीवन में शेष विषाद रहा!