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{{KKRachna
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
|संग्रह=सूर्य का स्वागत / दुष्यंत कुमार
}}
अगर इस लड़ाई में मेरी साँसें उखड़ गईं,<br>
मेरे बाज़ू टूट गए,<br>
मेरे चरणों में आँधियों आंधियों के समूह ठहर गए,<br>
मेरे अधरों पर तरंगाकुल संगीत जम गया,<br>
या मेरे माथे पर शर्म की लकीरें खिंच गईं,<br>
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