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मुआवजा / राजीव रंजन प्रसाद

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नया पृष्ठ: '''मुआवजा''' <br /> <br /> जो भी अभियान है,<br /> एक दूकान है<br /> जैसे कोई अधेड़न लि...
'''मुआवजा''' <br />
<br />
जो भी अभियान है,<br />
एक दूकान है<br />
जैसे कोई अधेड़न लिपिस्टिक लपेटे<br />
लबों पर खिलाती हो मुर्दा हँसी<br />
तुम हँसे वो फँसी।<br />

मैं फरेबों में जीते हुए थक गया<br />
शाख में उलटे लटक पक गया<br />
जिनके चेहरों में दिखते थे लब्बो-लुआब<br />
मुझको दे कर के उल्लू कहते हैं वो<br />
सीधा करो जनाब<br />
ख़्वाब सारे तो हैं झुनझुने थाम लो<br />
ले के भोंपू जरा टीम लो टाम लो<br />
बिक सको तो खुशी से कहो, दाम लो<br />
मर सको तो सुकूं से मरो, जाम लो<br />
जो करो एक भरम हो जो जीता रहे<br />
जीत अपनी ही हो, हाथ गीता रहे<br />

रेत के हों, महल उसकी बुनियाद क्या?<br />
पंख खोकर के तोते हैं आज़ाद क्या?<br />
जा के नापो फकीरे सड़क दर सड़क<br />
मैं छिपा कर के जेबों के पैबंद को<br />
यूं जमीं मे गड़ा, सुनता फरियाद क्या?<br />
मैं पहाड़ी नदी से मिला था मगर<br />
उसकी मैदान से दोस्ती हो गयी<br />
मैं किनारे की बालू में टूटा हुआ<br />
सोचता हूँ कि जिनके लुटे होंगे मन<br />
उनको भी मिलते होंगे मुआवजे क्या?<br />
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